क्रांति का आवाहन
जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |
दमन की चक्की में तू पिसता रहेगा कब तक ?
कलों की धुरी में तू घिसता रहेगा कब तक ?
लहू तेरा मिट्टी में रिसता
रहेगा कब तक ?
अस्थिर
हवाओं में झूलता रहेगा कब तक ?
जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |
केवल श्रम नहीं अराध्य तेरा और भी है |
केवल अन्न नहीं
साध्य तेरा और भी है |
केवल सेवा नहीं भाग्य तेरा और भी है |
श्रम
पे तेरे कोई फूलता रहेगा कब तक ?
जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |
निर्मित जिन से देश यह, मत पसार वे हाथ |
तू झुका
तो नत होगा हिन्द देश का माथ |
मांगे मिले न अधिकार छीन ले बल के साथ |
उदराग्नि
से तन सूखता रहेगा कब तक ?
जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |
तूने ही
भरत-देश को जीना
सिखाया था |
इस की सुप्त आत्मा को निद्रा से जगाया था |
रूढ़ी-ग्रस्त चेतना को स्वतन्त्र मग दिखाया था |
शीश
चढ़ अन्याय बोलता रहेगा कब तक ?
जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |
यही समय है कि रूढ़ियों का ढांचा तोड़ दे |
दमन की बाढ़ के
वहाव की दिशा मोड़ दे |
मानव की समानता का अध्याय नया जोड़ दे |
जीवन-मरण
के बीच डोलता रहेगा कब तक?
जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |
प्रणेता हरित क्रांति के, ताण्डव स्वर सुना दो |
भारत के उज्ज्वल भाल से कलंक सब मिटा दो |
रहें सभी
बन्धु सम
जहाँ ऐसा स्वर्ग बना दो |
स्वप्न
से सत्य को तोलता रहेगा कब तक ?
जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |
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