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क्रांति का आवाहन

क्रांति का आवाहन

                                                      (ओंकार ठाकुर)
                  
                     जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |
दमन की चक्की में तू पिसता रहेगा कब तक ?
कलों की धुरी में  तू  घिसता  रहेगा कब तक ?
लहू  तेरा  मिट्टी  में   रिसता  रहेगा कब तक ?
                    अस्थिर हवाओं में झूलता रहेगा कब तक ?
                    जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |

केवल श्रम नहीं अराध्य तेरा और भी है |
केवल अन्न नहीं  साध्य तेरा और भी है |
केवल सेवा नहीं  भाग्य तेरा और भी है |
                    श्रम पे तेरे कोई फूलता रहेगा कब तक ?
                    जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |

निर्मित जिन से देश यह, मत पसार वे हाथ |
तू झुका  तो नत होगा  हिन्द देश का  माथ |
मांगे मिले न अधिकार छीन ले बल के साथ |
                    उदराग्नि से तन  सूखता  रहेगा कब तक ?
                    जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |
  
तूने  ही  भरत-देश  को  जीना  सिखाया था |
इस की सुप्त आत्मा को  निद्रा से जगाया था |
रूढ़ी-ग्रस्त चेतना को स्वतन्त्र मग दिखाया था |
                    शीश चढ़ अन्याय बोलता रहेगा कब तक ?
                    जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |

यही समय है कि रूढ़ियों का  ढांचा तोड़ दे |
दमन की बाढ़ के  वहाव की  दिशा मोड़ दे |
मानव की समानता का अध्याय नया जोड़ दे |
                    जीवन-मरण के बीच डोलता रहेगा कब तक?
                    जाग ओ श्रमिक  मेरे देश के  तू जाग अब |

प्रणेता  हरित क्रांति के, ताण्डव स्वर  सुना दो |
भारत के उज्ज्वल भाल से कलंक सब मिटा दो |
रहें  सभी  बन्धु सम  जहाँ  ऐसा स्वर्ग बना दो |
                    स्वप्न से सत्य को तोलता रहेगा कब तक ?
                    जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब |

(1-5-2017)
                              ---०---

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