अज्ञान-तिमिर
(ओंकार ठाकुर )
संग लहरों के लहराती हुई
बिना पाल की चंचल नाव
अविरल प्रयास के बाद भी
तोड़ सकी न तम का घेराव |
दिशा भ्रम के वातावरण में
लक्ष्य स्वयं है विराट छलावा
नाव को निरन्तर धकेल रही है
लहरें देकर एक सुंदर छलावा |
कितने पोत विलीन हुए जल में
मानव अनुमान लगाता रह जायेगा
नाव शुद्र मेरी यह डूबेगी पल में
ऊपर यह सागर शांत लहराएगा |
इस से पहले भी रे नाविक यह
दलता आया हर जीवन क्रांति
मिथ्या सांत्वना न दो मन को,
नाम नहीं इस का चिर शान्ति
दूर गगन में इक तारा टूटा
छोड़ कर दीप्त आग्नेय रेखा
काश!! मिटने से पूर्व मैं भी
बदल सकता विधि का लेखा |
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