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त्रिविधा

  त्रिविधा

चेहरे की अगनित रेखाओं से
झांकता
गगन के मेघों को
सोचता है
बरसें तो क्या !
न बरसें
तो भी क्या !!
आखिर
नष्ट तो होगी ही
एक फसल|

चैत न बरसे
होगी नष्ट रबी |
सावन सूखा यदि
या बरसा अधिक
तो नहीं होगी
फसल ख़रीफ की |
ऋतू चक्र चला
यदि समय-बद्ध
तो मारी जाएगी
फसल रिलीफकी ||


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