क्रांति का आवाहन (ओंकार ठाकुर) जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब | दमन की चक्की में तू पिसता रहेगा कब तक ? कलों की धुरी में तू घिसता रहेगा कब तक ? लहू तेरा मिट्टी में रिसता रहेगा कब तक ? अस्थिर हवाओं में झूलता रहेगा कब तक ? जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब | केवल श्रम नहीं अराध्य तेरा और भी है | केवल अन्न नहीं सा...
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