व्यथित मन ...... जो हँसना चाहता है मन में आंसू हैं नयनों में सुमन नि:श्वासों की परतें बिछा कर दबाना चाहता हूँ एक ज्वालामुखी जो फटना चाहता है | जल जाए न कहीं कोई उपवन दृग-नीर की बूँदें बिखेर कर बुझाना चाहता हूँ भयंकर दावानल जो जलना चाहता है | पीड़ा से संवरे मोती ही जहाँ जीवन-धन विप्लव-वीणा की झंकार से मिटाना चाहता हूँ एक शहर जो बसना चाहता हूँ | विस्मृत न करे वेदना को मेरा मन हिय-पीर के गीत सुना कर रुलाना चाहता हूँ व्यथित मन को जो हँसना चाहता है || ------0-----
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