दुनियाँ-दारी दुःख-तप्त जनों की आह....! सुनाता हूँ, तो हंस देते हो तुम --- “प्रिय, ये दुनियाँ है...!” ..... महान हो तुम नित्यता दुःख की मान गए हो तुम | अश्रु-रंजित घाव मन के दिखता हूँ, तो नि:श्वास भरते हो तुम--- “प्रिय, संवेदना है मुझे....!” ...
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