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तू ही बता गुनाह से बचता किस तरह

मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात" से दूसरी क़िस्त :



तू ही बता गुनाह से बचता किस तरह

जादू है एक यह भी हसीनों कि जात में ,
ऐबों का भी शुमार है उन कि सिफात1 में|
                    हम जिंदगी  को पाते ही जी भर के रो दिए
                    यह जान कर कि फंस गए अब मुश्किलात में|
दुनियां तो क्या है चाँद की भी खाक छान ली,
हम को है अब तलाश-ए-सनम काइनात में|
                    फिर रात भर बनी रही मौजू-ए-गुफ्तगू2
                    निकली किसी से बात तेरी  बात बात में|
मरने के बाद आप ने पूजा तो क्या हुआ,
करना था एहतराम3 तो करते हयात4 में|
                    ए ताइर5-ए- हयात ख़बरदार देखना
                    सैयाद कोई छुप के न बैठा हो घात में|
तू ही बता गुनाह से बचता किस तरह
कुछ भी तो सूझता न था अँधेरी रात में|
                    दुनियां को खैरबाद6 न कह दे ये दिल कहीं
                    कुछ कजरवी7 सी आने लगी वाक्यात में|
फ़ितरत8 ने सब को एक से अज्जां9 दिए तमाम
कुछ इम्तियाज़10 ही न रखा जात पात में |
         
          ‘पंकज’ सिफ़ाते यार मैं क्यों कर करूँ ब्यान
          मिलते नहीं वो लफ्ज़ किसी भी लुगात11 में|




1 गुण 2 बात का विषय 3 सत्कार 4 जीवन 5 पंछी 6 अलविदा 7 टेढ़ी चाल 8 प्रकृति 9 अंग 10 भेदभाव 11 शब्दकोष 

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