नीला आकाश
(ओंकार ठाकुर )
यह नीला आकाश !
शायद इस ने विष पिया है
अपने प्रिय से बिछुड़ कर |
निशा आती है
खो जाता है
प्रिय के रत्नित आँचल में |
दिनकर का उदय
सन्देश है
वियोग का और
आकाश !
विछिन्न, रक्त रहित
नीला पड़ जाता है |
सुख और दुःख
समय की डोर से बंधे
एक ही धुरी पर
घूमते हैं
सांध्यके पदार्पण से
आशा की रक्तिम आभा
छा जाती है
आकाश के अधरों पर
कितनी सुखद है
प्रिय मिलन की कल्पना ||
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