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मई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

राही, धिक्कारो तब अपने मन को

    राही , धिक्कारो तब अपने मन को                                                               (ओंकार ठाकुर) सुन्दर भविष्य की मीठी चाह में, लक्ष्य साधना की लम्बी राह में,                     स्मरण कर अपने बीते जीवन को,                     राही , धिक्कारो मत अपने मन को | स्वार्थ नहीं तरु को तो फलना है, साथी नहीं तुझ को तो चलना है,                     मन स्मरण करे यदि स्वजन को,                     राही , धिक्कारो मत अपने मन को | क्...

एहले जहान की हवस-ए-ज़र तो देखिये

मेरे पूज्य पिता   स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित ग़ज़ल संग्रह   "फसिहात ओ खुराफ़ात" से उधृत  एहले जहान की हवस-ए-ज़र तो देखिये एहले जहान 1  की हवस-ए-ज़र 2 तो देखिये, दिन रात  दौड़ धूप का  चक्कर  तो देखिये |                     इस में भी  कैसे कैसे थे  अरमान  के  महल,                     उजड़े दयार-ए-दिल 3 के ये खण्डहर तो देखिये | नक़श-ओ-नगारे 4 यार पे फन ख़त्म कर दिया, अंग अंग पर कमाल-ए -मसव्वर 5 तो देखिये |                     माना कि खास नज़र-ए-इनायत 6 मुहाल 7 है ,                     गैरों के साथ  हम को  बराबर...

तेरी तस्वीर बना बैठे

तेरी तस्वीर बना बैठे                                            (ओंकार ठाकुर) बिगड़ी तकदीर बनानी थी, तेरी तस्वीर बना बैठे | आज़ाद किया था तूने हमें, हम  ज़ंजीर बना बैठे | वादा किया था  तुझ से,  तुझ  को भूल जाने का, या खुदा, बेख़ुदी  में  हम,  क्या  फिर  बना  बैठे |                                          कागज़ बना कर भूली हुई,  खोई  हुई यादों का |                     आँख के पानी में घोला,  रंग अपनी फर्यदों का |                     बन गए सब रंग, लाऊं कहाँ से  ...

क्रांति का आवाहन

क्रांति का आवाहन                                                       (ओंकार ठाकुर)                                          जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब | दमन की चक्की में तू पिसता रहेगा कब तक ? कलों की धुरी में  तू  घिसता  रहेगा कब तक ? लहू  तेरा  मिट्टी  में   रिसता  रहेगा कब तक ?                     अस्थिर हवाओं में झूलता रहेगा कब तक ?                     जाग ओ श्रमिक मेरे देश के तू जाग अब | केवल श्रम नहीं अराध्य तेरा और भी है | केवल अन्न नहीं  सा...