तेरी तस्वीर बना बैठे
(ओंकार ठाकुर)
बिगड़ी तकदीर बनानी थी, तेरी तस्वीर बना बैठे |
आज़ाद किया था तूने हमें, हम ज़ंजीर बना बैठे |
वादा किया था तुझ से, तुझ को भूल जाने का,
या खुदा, बेख़ुदी में हम, क्या
फिर बना बैठे |
कागज़
बना कर भूली हुई, खोई हुई यादों का |
आँख
के पानी में घोला, रंग अपनी फर्यदों का |
बन
गए सब रंग, लाऊं कहाँ से रंग-ए-बेबफाई,
खाक
किये ख्बाब जिसने, घोंटा गला इरादों का |
खता हुई जो भी मुझ से, इस दफा न होगी |
जिस हाल में चाहूँ रखूं, तस्वीर खफा न होगी |
है यकीं मुझे रंगों पे, कलम पे, हुनर पे अपने,
तेरी तस्वीर तुझसी बेदिल,औ बेवफा न होगी|
गिला
होगा न ग़र, इज़हार करूं न प्यार करूँ |
‘उफ़
!’ करेगी न ये, मैं सितम बेशुमार करूँ |
चेहरे पे हंसी, आँखों में शोखी कम न होगी,
चीर
कर बेदर्दी से, चाहे टुकड़े हज़ार करूँ |
ये ज़ुल्फ़ का साया, भोहों की कमान मेरे लिए है|
जिस्म की लोच, होठों की मुस्कान, मेरे लिए है |
दिल
के ज़ख्मों पे, मरहम लगाने की जानिब,
मुखड़े पे छाया
जज्वातों का तूफान मेरे लिए है |
तेरी
याद हो जहाँ वो मंज़र छोड़ना चाहता था |
धुंधले
रंगों में रंग नया, न जोड़ना चाहता था |
जाने
लग गई हवा कैसे, दबे शोलों में वरना.
तुझे
भूल जाने कि क़सम, न तोड़ना चाहता था |
चाहा था मक़तल बनाते, पर मंदिर बना बैठे |
इक नाकाम नाचीज़ को, मुअस्सर बना बैठे |
वादा किया था तुझसे, तुझ को भूल जाने का,
या खुदा, बेख़ुदी में हम, क्या फिर बना बैठे |
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