मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात" से उधृत
एहले जहान की हवस-ए-ज़र तो देखिये
एहले
जहान1 की हवस-ए-ज़र2 तो देखिये,
दिन
रात दौड़ धूप का चक्कर
तो देखिये |
इस में भी कैसे कैसे थे
अरमान के महल,
उजड़े दयार-ए-दिल3 के
ये खण्डहर तो देखिये |
नक़श-ओ-नगारे4
यार पे फन ख़त्म कर दिया,
अंग
अंग पर कमाल-ए -मसव्वर5 तो देखिये |
माना कि खास नज़र-ए-इनायत6
मुहाल7 है ,
गैरों के साथ हम को
बराबर तो देखिये |
कल
थी कलंक और बनेगी कला यह कल,
उरियानिये8
–सनम के ये मंज़र तो देखिये |
रफ्तार-ए-देहर9 देख
के कुछ दूर अब नहीं,
ठहरो ज़रा नज़ारा-ए-महशर10
तो देखिये |
पायेंगे
आप दावत-ए-शिराज़11 का मज़ा,
जाने-मन12
एक बार मेरा घर तो देखिये |
हर आदमी का ज़िक्र कमोबेश है
ज़रूर,
ये दास्तान-ए-रंज के दफ्तर तो देखिये |
किन मंजिलों के एहल थे किस जगह रह गए,
‘पंकज’ ज़रा मज़ाक- ए -मक़द्दर तो देखिये |
1 संसार
के लोग 2 तृष्णा 3 दिल की बस्ती 4 नख शिख 5 चित्रकार 6 कृपा दृष्टि 7 कठिन 8
प्रेयसी की नग्नता
9 काल गति 10 प्रलय का दृश्य 11 विदुर
का साग 12 प्राण प्रिये |
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