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अपने बारे में है अव्वाम की राय क्या

मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात"  अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद  से उधृत   

  अपने बारे में है अव्वाम की राय क्या

तेरी रहमत के लिए गम न उठाये क्या क्या |
बिलबिलाते हुए आंसू न बहाए  क्या क्या ||
          यह सदाक़त1 की ही ताक़त थी कि तोहमत2  न लगी|
          वरना तूने  ए  फलक3     गुल न खिलाये क्या क्या ||
न हुआ सब्र-ओ-सकूँ4  इस को अभी तक न हुआ |
दम दिलासे दिल-ए-नालां5  को दिलाये क्या क्या ||
          यही बेहतर है  कि तुम याद न आओ हर दम |
          वर्ना मालूम क्या, जुवां पर मेरी आये क्या क्या ||
यूँ ही उठता था तेरा दस्त-ए-करम6  जब मुझ पर |
दिल ने  उस वक्त भी  अरमान छुपाये क्या क्या ||
          ज़िन्दगी में कभी थोड़ी सी मुस्सर्रत बख्शी |
          बात इतनी सी थी एहसान जताए क्या क्या ||
तोड़ डाली है  इस बोझ तले कमर अपनी |
उम्र भर हम ने भी आह! नाज़ उठाये क्या क्या ||
          दर्दे-दिल, सोज़े-जिगर7 , आबला-ए-पा8, चश्मे-तर9 |
          हम ने  तोहफे   तेरे दरबार से   पाए क्या क्या ||
चुन न पाया  मैं अगर,  यह मेरी नादानी थी |
खंदाज़न10 बाग़ में थे फूल तो हाय क्या क्या ||
          एहले दुनियां कि तो है बात बढ़ाना फ़ितरत |
          वर्ना क्या बात थी इल्जाम लगाये क्या क्या ||
एक मैख्वार को यह रुतवा11  भला कब मिलता |
हम सबूत अपनी शराफत के न लाये क्या क्या ||
          हक12  तो यह है कि हकीक़त को छुपाया बिल्कुल |
          दीन वालों ने भी  उफ़!  ढौंग  रचाए  क्या क्या ||
तरके-दुनियां13  की उमंगें लिए बैठा है दिल |
इसे भी  सूझ गई   बैठे   बिठाये  क्या क्या ||

          कूचे  कूचे14  में  ज़रा  घूम के देखो  पंकज’|
          अपने बारे में है अव्वाम15  की राय क्या क्या ||




1 सत्य   2  आरोप  3 दैव  4 शान्ति  5 रोने वाला  6 वरद-हस्त  7 जलन  8 पैरों के छाले  9 भीगी आँखें   10 हँसता हुआ   11 पदवी  12 सत्य 13  संसार का त्याग  14 गली गली   15 जनता |

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