व्यथित मन ...... जो हँसना चाहता है
मन में आंसू हैं
नयनों में सुमन
नि:श्वासों
की परतें बिछा कर
दबाना चाहता हूँ
एक ज्वालामुखी
जो फटना चाहता है |
जल जाए न कहीं
कोई उपवन
दृग-नीर की बूँदें बिखेर कर
बुझाना चाहता हूँ
भयंकर दावानल
जो जलना चाहता है |
पीड़ा से संवरे मोती
ही जहाँ जीवन-धन
विप्लव-वीणा की झंकार से
मिटाना चाहता हूँ
एक शहर
जो बसना चाहता हूँ |
विस्मृत न करे
वेदना को मेरा मन
हिय-पीर के गीत सुना कर
रुलाना चाहता हूँ
व्यथित मन को
जो हँसना चाहता है ||
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