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इल्म कि चीज़ अगर ख़ुदा होता

मेरे पूज्य पिता   स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं  प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह   "फसिहात ओ खुराफ़ात"  अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद  से उधृत   मय जो थोड़ी सी पी गया होता   मैं भी सूफी – ओ – पारसा 1  होता | काश मुझ को गम न दिया होता ||           है ये सारा वजूद 2  का किस्सा |           मैं न होता अगर तो क्या होता || छा चुका था दिलो दिमाग में जो | उस से क्यों कर मैं बेवफ़ा होता ||           बात दिल खोल कर तो कर लेता |           मय जो थोड़ी सी पी गया होता || तेरी रहमत 3  को जानते क्यों कर | ग़र न हम ने गुनाह किया होता ||           बहस क्या थी हवास-ए-खमसा 4 के           इल्म कि चीज़ अगर ख़ुदा होता || अपने ही ग़म से जब नहीं फुर्सत...

त्रिविधा

    त्रिविधा चेहरे की अगनित रेखाओं से झांकता गगन के मेघों को सोचता है – बरसें तो क्या ! न बरसें तो भी क्या !! आखिर नष्ट तो होगी ही एक फसल| चैत न बरसे होगी नष्ट रबी | सावन सूखा यदि या बरसा अधिक तो नहीं होगी फसल ख़रीफ की | ऋतू चक्र चला यदि समय - बद्ध तो मारी जाएगी फसल ‘ रिलीफ ’ की ||