मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात" अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद से उधृत
मय जो थोड़ी सी पी गया होता
मैं
भी सूफी – ओ – पारसा1 होता |
काश
मुझ को गम न दिया होता ||
है ये सारा वजूद2 का किस्सा |
मैं न होता अगर तो क्या होता ||
छा
चुका था दिलो दिमाग में जो |
उस
से क्यों कर मैं बेवफ़ा होता ||
बात दिल खोल कर तो कर लेता |
मय जो थोड़ी सी पी गया होता ||
तेरी
रहमत3 को जानते क्यों कर |
ग़र
न हम ने गुनाह किया होता ||
बहस क्या थी हवास-ए-खमसा4 के
इल्म कि चीज़ अगर ख़ुदा होता ||
अपने
ही ग़म से जब नहीं फुर्सत |
कौन
किस का ग़म आशना5 होता ||
बुत पे सजदे6 का असर हो कि न
हो |
मज़हबी फ़र्ज़ तो अदा कर दिया होता ||
मेरी
मय्यत7 को उनका एक आंसू
गिर
के पाकीज़ा8 कर गया होता ||
चाँद तारों की महफिलें सजतीं |
जिन में ‘पंकज’ ग़ज़ल सरा होता ||
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