मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात" अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद से उधृत :
मुमकिन है मेरे ज़ख्म का दरमा होना
ग़र
न पैदा हुए अंगूर तो फिर
क्या होगा ||
तुझ
से मुमकिन2 है मेरे ज़ख्म का दरमा3 होना |
ज़ख्म
ग़र बन गया नासूर4 तो फिर क्या होगा ||
सर
हथेली पर रख कर भेंट चढ़ाऊं
तो सही |
तोहफा
ये भी न हो मंज़ूर तो फिर क्या होगा ||
तुम्हारे
दीदार5 से महफ़िल में हों जो सूफी6 भी |
वे
सब भी हो गए मखमूर7 तो फिर क्या होगा ||
शौक़
से राह - ए- तसव्वुफ़8 पे चलूँगा लेकिन |
उस
की मंज़िल हो अगर दूर तो फिर क्या होगा ||
फूल
चुनते हुए दामन
ही अगर ए नादान |
हो
गया खार9 से भरपूर तो फिर क्या होगा ||
ले
तो आया है मुझे शौक –ए-ज़ियारत10 घर से |
ग़र
हुआ चलने से मजबूर तो फिर क्या
होगा ||
अपनी
हिम्मत से हिला अर्ज़ो-समां11
को ए दिल |
पसलियों
में ही रहा महसूर12 तो फिर क्या होगा ||
रोज़
ही पीते हैं यहाँ
लोग चलें और
कहीं |
हो
वहां भी यही दस्तूर13 तो फिर क्या होगा ||
बाईस-ए-जोश-ए-मसर्रत14
न अगर हो
‘पंकज’ |
जश्न-ए-आज़ादी-ए-जम्हूर15
तो फिर क्या होगा ||
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[1] बर्षा
न होना 2 सम्भव 3 उपचार
4 कैंसर 5 दर्शन 6 सन्यासी, विरक्त 7 नशे में
8 वैराग मार्ग 9 कांटे 10 तीर्थ यात्रा की चाह 11 पृथ्वी और आसमान 12 बंदी
13 रिवाज़ 14 ख़ुशी व उत्साह का
कारण 15 स्वतंत्रता समारोह |
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