दुनियाँ-दारी
दुःख-तप्त जनों की
आह....!
सुनाता हूँ, तो
हंस देते हो तुम ---
“प्रिय,
ये दुनियाँ है...!”
.....
महान हो तुम
नित्यता
दुःख की
मान
गए हो तुम |
अश्रु-रंजित घाव
मन के
दिखता हूँ, तो
नि:श्वास भरते हो तुम---
“प्रिय,
संवेदना है मुझे....!”
.....
महान हो तुम
अपने-पराये
को
पहचान
गए हो तुम |
पुष्प की अभिलाषा में
कांटे की चुभन
सह न सके, तो
कराह उठते हो तुम---
“विधाता
कितना निष्ठुर है...!”
.....
महान हो तुम
जीवन-सार
सचमुच
जान
गए हो तुम |
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