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आजमाया मसीह को भी मगर

मेरे पूज्य पिता   स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं  प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह   "फसिहात ओ खुराफ़ात"  अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद  से उधृत:         आजमाया मसीह को भी मगर बात भी हम ने की नहीं होती, मय जो हम ने पी नहीं होती |            आज़माया मसीह [1] को भी मगर, दर्द में कुछ कमी नहीं होती | नाज़ उठाने को चाहिए जितनी, उम्र उतनी बड़ी नहीं होती |            आप जब तक न मेहरबां होंगे, रहमत-ए-एज़दी 2  नहीं होती | यह भी है क्या कमाले सन्नाई 3 , दो की शक्ल एक सी नहीं होती |            जाऊं जन्नत भी छोड़ कर तुझे, ऐसी ख्वाहिश कभी नहीं होती | खाओ पियो खूब जियो जब तक, ज़िन्दगी इसलिए नहीं होती |            मय की करते हो पेशकश उस वक्त, जब हमें तिशनगी 4  नहीं होती | कोई समझाए श...