मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात" अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद से उधृत:
आजमाया मसीह
को भी मगर
बात
भी हम ने की नहीं होती,
मय
जो हम ने पी नहीं होती |
नाज़
उठाने को चाहिए जितनी,
उम्र
उतनी बड़ी नहीं होती |
आप जब तक न मेहरबां होंगे,
रहमत-ए-एज़दी2 नहीं होती |
यह
भी है क्या कमाले सन्नाई3 ,
दो
की शक्ल एक सी नहीं होती |
जाऊं जन्नत भी छोड़ कर तुझे,
ऐसी ख्वाहिश कभी नहीं होती |
खाओ
पियो खूब जियो जब तक,
ज़िन्दगी
इसलिए नहीं होती |
मय की करते हो पेशकश उस वक्त,
जब हमें तिशनगी4 नहीं होती |
कोई
समझाए शोखिये दिल5 को,
हर
गली यार की नहीं होती |
इस जईफी6 में नाज़बर्दारी7 ,
हम से तो अब बाकई नहीं होती |
छोड़
दे इस उम्मीद को, बापिस
उम्र-ए-रफ्ता8
नहीं होती |
है मुक़र्रर वफ़ात9 की तारीख़,
जो कभी मुल्तवी10 नहीं होती |
लज्ज़तों11
का तो लुत्फ़ उठाता हूँ,
उनसे
बावस्तगी12 नहीं होती |
हम को फ़िक्र-ए-मुआश13 है पंकज,
फुर्सत-ए - शायरी नहीं होती ||
[1] मसीहा
को छूने मात्र से रोग नष्ट हो जाता था 2 भगवद
कृपा 3.
रचना की निपुणता 4 प्यास 5 दिल की चंचलता 6 बुढ़ापा
7 नखरे उठाना 8 बीती आयु 9 मृत्यु
10 पीछे टलना 11 भोग 12 आसक्ति
13 रोज़गार की चिंता |
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