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स्व० श्री लाल दास जी ‘पंकज’ का जीवन एवं साहित्य यात्रा

  स्व ० श्री लाल दास जी ‘पंकज’ का जीवन एवं साहित्य यात्रा           लेखक : ओंकार ठाकुर आईपीएस (से o नि o ) बजौरा, कुल्लू कुल्लवी भाषा के साहित्य जगत में, मेरे पूज्य पिताश्री  श्री लाल दास ठाकुर जी का एक विशिष्ट स्थान है। उनका वर्षों का अविरल प्रयास कुल्लवी भाषा में महाभारत के रूप में फलीभूत हुआ। इस के अतिरिक्त उन द्वारा लिखित, उर्दू में गज़लों का संग्रह फसीहातो खुराफात, कुल्लवी में भगवद्गीता गीता और हिन्दी में कुल्लवी भाषा से संबंधित ‘पुआम’ प्रकाशित हुई हैं। बहुत सा अप्रकाशित साहित्य अभी शेष है जिसे निकट भविष्य में उचित प्रकाशक मिलने पर प्रकाशित करने का विचार रखता हूँ।  लाल दास जी का जीवन एक पहाड़ी नदी के प्रवाह के भांति  रहा है। यह प्रवाह कठिनाइयों का सामना करते हुए निरंतर आगे बढ़ता रहा। निम्नलिखित वृतांत का अधिकतर भाग उनके द्वारा लिखित संस्मरणों से ही लिया गया है। उनका जन्म प्रविषटे 26 फाल्गुन सम्वत 1881, तदनुसार दिनांक 8 मार्च 1924 को कुल्लू जिला (उस समय पंजाब के कांगड़ा जिला की तहसील) के सुदूर व दुर्गम क्षेत्र के...

बिकता मिस्र की गलियों में यूसुफ क्यों

  मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं   प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह   "फसिहात ओ खुराफ़ात"  अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद  से उधृत:           बिकता मिस्र   की गलियों में यूसुफ क्यों?   जीस्त की पुरखार 1  राहों पर करें तुफ़ 2 क्यों । ओखली में   सिर  दिया  हो   तो उफ़ क्यों ।।                 वस्फ़ 3 भी बनता है   अक्सर   बाइस-ए-एज़ा 4 ।                 वरना बिकता मिस्र की गलियों में यूसुफ क्यों। फिक्र-ए-मुस्तकबिल 5 गर है मय से तौबा कर। दो घड़ी के लुत्फ पर   इतना   तसर्रुफ़ 6   क्यों।।                 जब जुहूरे 7 अंसर-ए-खाकी 8   है सब   मख्लूक 9 |           ...

बार-ए-चश्मा के हो गए हामिल

  मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं   प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह   "फसिहात ओ खुराफ़ात"  अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद  से उधृत:    बार-ए-चश्मा के हो गए हामिल ज़िक्रे ग़म गाह-बगाह [1] कर बैठे, उनको बदनाम   आह! कर बैठे | तेरी रहमत के साये में हम भी,   गाहे गाहे   गुनाह   कर   बैठे | बार-ए-चश्मा 2  के हो गए हामिल 3 , उन की जानिब  निगाह कर बैठे |                    और तो और   सामने  उन  के,    सर नगूं 4 मेहरा-माह 5 कर बैठे | दर्दे दिल बन के पड़ गई उलटी , दिल्लगी ख्वा: मखाह कर बैठे |                    जिस में रहबर 6 नहीं कोई मिलता,    इख़्तियार   ऐसी   रह   कर   बैठे | दिल जरासा भी ज़ब्त 7 कर न सका, आँख मिलते ही आह!   कर   बैठे | ...