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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिकता मिस्र की गलियों में यूसुफ क्यों

  मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं   प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह   "फसिहात ओ खुराफ़ात"  अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद  से उधृत:           बिकता मिस्र   की गलियों में यूसुफ क्यों?   जीस्त की पुरखार 1  राहों पर करें तुफ़ 2 क्यों । ओखली में   सिर  दिया  हो   तो उफ़ क्यों ।।                 वस्फ़ 3 भी बनता है   अक्सर   बाइस-ए-एज़ा 4 ।                 वरना बिकता मिस्र की गलियों में यूसुफ क्यों। फिक्र-ए-मुस्तकबिल 5 गर है मय से तौबा कर। दो घड़ी के लुत्फ पर   इतना   तसर्रुफ़ 6   क्यों।।                 जब जुहूरे 7 अंसर-ए-खाकी 8   है सब   मख्लूक 9 |           ...

बार-ए-चश्मा के हो गए हामिल

  मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं   प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह   "फसिहात ओ खुराफ़ात"  अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद  से उधृत:    बार-ए-चश्मा के हो गए हामिल ज़िक्रे ग़म गाह-बगाह [1] कर बैठे, उनको बदनाम   आह! कर बैठे | तेरी रहमत के साये में हम भी,   गाहे गाहे   गुनाह   कर   बैठे | बार-ए-चश्मा 2  के हो गए हामिल 3 , उन की जानिब  निगाह कर बैठे |                    और तो और   सामने  उन  के,    सर नगूं 4 मेहरा-माह 5 कर बैठे | दर्दे दिल बन के पड़ गई उलटी , दिल्लगी ख्वा: मखाह कर बैठे |                    जिस में रहबर 6 नहीं कोई मिलता,    इख़्तियार   ऐसी   रह   कर   बैठे | दिल जरासा भी ज़ब्त 7 कर न सका, आँख मिलते ही आह!   कर   बैठे | ...