मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात" अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद से उधृत:
बार-ए-चश्मा के हो गए हामिल
ज़िक्रे
ग़म गाह-बगाह[1] कर बैठे,
उनको
बदनाम आह! कर बैठे |
तेरी रहमत के साये में हम भी,
गाहे गाहे गुनाह कर
बैठे |
बार-ए-चश्मा2 के हो गए हामिल3,
उन
की जानिब निगाह कर बैठे |
और तो और सामने उन के,
सर नगूं4 मेहरा-माह5
कर बैठे |
दर्दे
दिल बन के पड़ गई उलटी,
दिल्लगी
ख्वा: मखाह कर बैठे |
जिस में रहबर6 नहीं
कोई मिलता,
इख़्तियार ऐसी रह कर बैठे
|
दिल
जरासा भी ज़ब्त7 कर न सका,
आँख
मिलते ही आह! कर बैठे |
हाय ! यह इल्लते8
नशाखोरी,
अपना सब कुछ तबाह कर बैठे |
इक
गुनाह को छुपाने की खातिर,
हम
गुनाह पर गुनाह कर बैठे
|
उस पे तेरा करम नहीं होता,
तुझ पे जो इश्तबाह9 कर बैठे
|
ज़ीना10
चढ़ने की भी नहीं ताक़त,
चाँद
तारों की चाह कर बैठे |
अब न रोया करो कभी ‘पंकज’|
तुम बसीरत11 तबाह कर बैठे ||
[1] जगह
जगह 2 ऐनक का बोझ 3 उठाने वाले 4 झुकाना 5 सूर्य चन्द्र 6 पथ प्रदर्शक 7 काबू पाना
8 आदत 9 सन्देह 10 सीढ़ी – पक्षाघात के कारण लेखक मुश्किल से चल पाते थे 11 दृष्टि
Very beautiful lines
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