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बिकता मिस्र की गलियों में यूसुफ क्यों

 

मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात"  अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद  से उधृत:  

     बिकता मिस्र  की गलियों में यूसुफ क्यों?


 जीस्त की पुरखार1 राहों पर करें तुफ़2 क्यों ।

ओखली में  सिर  दिया  हो  तो उफ़ क्यों ।।

                वस्फ़3 भी बनता है  अक्सर  बाइस-ए-एज़ा4

                वरना बिकता मिस्र की गलियों में यूसुफ क्यों।

फिक्र-ए-मुस्तकबिल5 गर है मय से तौबा कर।

दो घड़ी के लुत्फ पर  इतना  तसर्रुफ़6  क्यों।।

                जब जुहूरे7 अंसर-ए-खाकी8  है सब  मख्लूक9 |

                फिर किसी की ज़ात पर मुंह फेर कर तुफ़ क्यों ||

क्यों किये  खातिर तव्वाज़ो10 के  ये सब सामान |

मुझ को जब अपना लिया फिर ये तकल्लुफ11 क्यों||

                इख्तितामे-कारे-दुनियां12 पर था क्या वादा|

                भूल बैठे  हो उसे  वरना तवक्कुफ़13 क्यों ||

है नहीं तर्ज़े-सखुन14 की जिन को पहचान |

पूछते फिर  वे बशर  मेरा तआर्रुफ़15 क्यों ||

 

        तर्क-ए-दुनियां16 तो फतूर-ए-ज़ेहन17 है ‘पंकज|

        भोगने की चीज़ पर  वरना  तसव्वुफ़18 क्यों ||



1 काँटों भरी 2 घृणा 3 सद्गुण 4 दुःख का कारण 5 भविष्य की चिंता 6 व्यय 7 प्राकट्य 8 भौतिक तत्व 9 मानव 10 सत्कार 11 शिष्टाचार 12 संसार के कार्यों की पूर्ति 13 विलम्ब 14 बात-चीत का ढंग 15 वैराग्य 16 बुद्धि-भ्रम 17 त्याग   यूसुफ़ अब तक का सबसे खूबसूरत आदमी था और ज़ुलेखा नाम की मिस्र की शहजादी उस पर दिलोजान से मुहब्बत करती थी जिस के लिए और शाहजादियां उसे एक गुलाम पर फ़िदा होने का ताना देती थीं 

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