मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात" अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद से उधृत:
बिकता मिस्र की गलियों में यूसुफ क्यों?
ओखली में सिर दिया हो तो उफ़ क्यों ।।
वस्फ़3
भी बनता है अक्सर बाइस-ए-एज़ा4।
वरना
बिकता मिस्र की गलियों में यूसुफ क्यों।
फिक्र-ए-मुस्तकबिल5 गर है मय
से तौबा कर।
दो घड़ी के लुत्फ पर इतना तसर्रुफ़6
क्यों।।
जब
जुहूरे7 अंसर-ए-खाकी8
है सब मख्लूक9 |
फिर
किसी की ज़ात पर मुंह फेर कर तुफ़ क्यों ||
क्यों किये खातिर तव्वाज़ो10 के ये सब सामान |
मुझ को जब अपना लिया फिर ये तकल्लुफ11
क्यों||
इख्तितामे-कारे-दुनियां12
पर था क्या वादा|
भूल
बैठे हो उसे वरना तवक्कुफ़13 क्यों ||
है नहीं तर्ज़े-सखुन14 की जिन को
पहचान |
पूछते फिर वे बशर मेरा
तआर्रुफ़15 क्यों ||
तर्क-ए-दुनियां16
तो फतूर-ए-ज़ेहन17 है ‘पंकज’|
भोगने
की चीज़ पर वरना तसव्वुफ़18 क्यों ||
1 काँटों
भरी 2 घृणा 3 सद्गुण 4 दुःख का कारण 5 भविष्य की चिंता 6 व्यय 7 प्राकट्य 8 भौतिक
तत्व 9 मानव 10 सत्कार 11 शिष्टाचार 12 संसार के कार्यों की पूर्ति 13 विलम्ब 14
बात-चीत का ढंग 15 वैराग्य 16 बुद्धि-भ्रम 17 त्याग
Sadar Naman,what a nice history,Om Shanti Om.
जवाब देंहटाएं