तुम स्वयं एक कविता हो (ओंकार ठाकुर ) तुम स्वयं एक कविता हो तुम को क्या सुनाऊं मैं | मूर्ख मुझे संसार कहेगा सूर्य को दीप दिखाऊं मैं | मेरी कल्पना ठगी रह गई जब जब तुम्हें निहारा | शुष्क हुआ कंठ लेखनी का कागज़ सूना रहा बेचारा | ...
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