मेरे पूज्य पिता स्व० श्री लाल दस ठाकुर 'पंकज' द्वारा लिखित एवं प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह "फसिहात ओ खुराफ़ात" अर्थात् मधुर वाणी व बकवाद से उधृत : मुमकिन है मेरे ज़ख्म का दरमा होना खुश्क-साली 1 न हुई दूर तो फिर क्या होगा | ग़र न पैदा हुए अंगूर तो फिर क्या होगा || तुझ से मुमकिन 2 है मेरे ज़ख्म का दरमा 3 होना | ज़ख्म ग़र बन गया नासूर 4 तो फिर क्या होगा || सर हथेली पर रख कर भेंट चढ़ाऊं तो सही | तोहफा ये भी न हो मंज़ूर तो फिर क्या होगा || तुम्हारे दीदार 5 से महफ़िल में हों जो सूफी 6 भी | वे सब भी हो गए मखमूर 7 तो फिर क्या होगा || शौक़ से राह - ए- तसव्वुफ़ 8 पे चलूँगा लेकिन | उस की मंज़िल हो अगर दूर तो फिर क्या होगा || फूल चुनते हुए ...
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